The best thing to do 'when you are supposed to work!' Try This -Nishant
Friday, November 16, 2007
Nishant: Get Addicted!
Posted by Nishant Neeraj at 6:05 PM 0 comments
Tuesday, November 6, 2007
Neeraj: Dedicated to the service of Guide!
Dedicated to the service of Guide!
(scroll down for English script of the poem.)
(Fonts are not formated well?)
दिनांक: ७ मई, २००७
समय: सायं ७:०० बजे
स्थान: राधाकृष्णन छात्रावास, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर
सिर्फ़ ७२ घंटे -- एम. टेक्. की फ़ाईनल थेसिस जमा करने में।
सम्मानिय गाइड जी के (अनचाहे) लेक्चर और धमकियां सुनने के
बाद सोचा कि ‘चलो अच्छा, अब थेसिस लिखना शुरु ही कर देते हैं।’
पहले लिखने का वातावरण बनाते है फ़िर लिखना शुरु करेंगे। वातावरण
बनाना शुरु हुआ-- सारे रिज़ल्ट्स इकठ्ठे किये गए, बहुत सारे मेरे पुराने
रिज़ल्ट्स थे, जिनसे गाईड संतुष्ट नहीं था; और बहुत लम्बी लिस्ट अभी बची थी, सिम्युलेट करने को।
"थेयोरेटिकल भाग पहले समाप्त करते हैं फ़िर शुरु करेंगे कुछ और" सोचकर कम्प्यूटर पर ‘एक लड़की की तुम्हे क्या बताऊँ दास्तां’ बैकग्राउंड म्युज़िक लगाकर लिखना शुरु किया गया।
पर मस्तिष्क में तो गाईड जी की तस्वीर घूम रही थी। गाना कानो से
होता हुआ दिमाग़ में कुछ इस प्रकार पहुँचता है:
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धुन: एक लड़की की तुम्हे क्या बताऊँ दास्तां..
टेम्पो: low
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एक गाईड की तुम्हे क्या बताऊँ दास्तां
वो psycho है बड़ा ही चुदा
उसको आए इसमे ही मज़ा
fool बनाके, लोग सरक जाएं
जाए वो गाईड जहाँ।
है ख़फ़ा ही ख़फ़ा, थेसिस फ़ाड़ देता वो
फ़िर है लाता चेहरे पर गन्दी मुस्कान वो
चुप है तो चुप ही है वो
फ़िर खुद ही बड़बड़ाता वो
और देता extension के ताने भी रोज़
एक गाईड की तुम्हे क्या बताऊँ दास्तां...
कैसे कहूं कैसा है वो
बस हिटलर के जैसा है वो
fool बनाके, लोग सरक जाएं
जाए वो गाईड जहाँ।
एक गाईड की तुम्हे क्या बताऊँ दास्तां...
आजकल हरपल, बीता जो था उसकी लैब पर
क्या कहूं ख्वाबों में आता है क्यूं
याद आये जो, उसके वारनिंग की लड़ी
क्या कहूं मैं डर सा जाता हूँ क्यूं
एक गाईड की तुम्हे क्या बताऊँ दास्तां....
- नीरज कुमार सिंह ‘बेबी’
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DATE: 7 May, 2007 TIME: 7:00 PM
PLACE: R.K Hall of Residence, IIT KHARAGPUR
Sirf 72 hrs left for final M.Tech Thesis submission. Guide ji ki lecture & warning sunne ke baad socha ki aaj thesis likhna shuru kiya jaye. Uske liye pura vatavaran (atmosphere) banaana shuru kiya gaya. Saare result collect kiye jinse guide satisfied nahi tha. Also a big list of results was in queue for simulation.
Abb socha ki pahle theorical part hi complete kar liya jaye. Likhna start kiya with a background music “ek ladki ki tumhe kya batau dastan” in my computer. Par mastishq (mind) main to guide ji ki hi tasveer ghum rahi thi aur meeting hi yaad aa rahi thi jisme aaj usne meri neend uda di. Jis karanvas ye geet kaano main se hota hua dimag main kuch iss prakar transform ho raha tha...
Voh psycho pada hai chudaa
Usko aaye esmain maja
Fool(angrezi vala) banke, log sarke jaaye voh guide jahan
Hai khafa hi khafa, thesis faad deta hai vo
Fir laata hai chehre par gandi muskaane voh
Ho, chup hai to chup hai voh, phir khud hi voh badbadata hai
deta hai extension ke taane bhi roj
Kaise kahoon kaisa hai voh
Bas Hitler hi ke jaisa hai voh
Fool banke, log sarke jaaye voh guide jahan
Ek guide ki tumhe kya sunaaoon daastaan
Aaj kal har voh pal beeta jo tha uski lab par
Kya kahoon khwaabon mein aata hai kyoon
Ho, yaad jo aaye to uski warning ki voh ladi
Kya kahoon main darr sa jaata hai kyoon
-Neeraj Kumar Singh
Posted by Nishant Neeraj at 5:01 PM 1 comments
Labels: Fun, iit, memoirs, Wingie Talk
Monday, November 5, 2007
Nishant: Oh! He is Chennai?! Alive!
Here is my version of Chennai description, well... it is not all bad. How? Navigate to my blog: OMG, you are in “CHENNAI”?!
Posted by Nishant Neeraj at 8:16 PM 0 comments
Labels: Documentary, Fun